प्रेमम : एक रहस्य! (भाग : 07)
तेजी से सरपट दौड़ते हुए आदित्य की कार सभी रास्तों को पीछे छोड़ते हुए मुख्य मार्ग पर पहुंच चुकी थी। आदित्य बहुत ही कुशलता से ड्राइविंग कर रहा था, भले ही अरुण उसे रेस्पेक्ट नही देता था मगर आदित्य के दिल में उसके लिए एक भी बुरे भाव नही थे। वह एक सौम्य और हँसमुख प्रवृत्ति का, सबका भला चाहने वाला नौजवान था। पीछे की सीट पर अरुण का बेहोश जिस्म पड़ा हुआ था, जिसे दो कांस्टेबलों ने पकड़ रखा था। अभी जो कुछ भी घटित हुआ था उससे सभी इतना अधिक बौखला गए थे कि किसी को कुछ भी समझ नही आ रहा था। आदित्य ने मेघना को कॉन्टैक्ट कर घटनास्थल पर भेज दिया था और स्वयं अरुण को लेकर पास के हॉस्पिटल जा रहा था। कार अपने पूरे रफ्तार से दौड़ रही थी, सायरन के कारण सभी रास्ता छोड़कर एक किनारे होते जा रहे थे।
एक कांस्टेबल ने अरुण का सिर उठाया हुआ था तो दूसरे ने घुटने के पास थामा हुआ था, उनकी नजरों से भी वह भयंकर दृश्य ओझल नही हो रहा था। अरुण बुरी तरह बेहोश था, उसकी नब्ज लगभग थम सी गयी थी। बाहर से पत्थर जैसा दिखने वाला इंसान इस मंजर को देखकर टूट सा गया था। अब तक तो सभी यहीं सोच रहे थे, आदित्य को कुछ समझ नही आ रहा था कि ये सब जो हो रहा है वो क्यों हो रहा है!
तभी अरुण का शरीर थोड़ा सा हिला, कॉन्स्टेबल ने उठाए कसकर पकड़ लिया। अरुण का शरीर कसमसाया, उसके बाएँ हाथ की बाँह का जख्म बहुत अधिक दर्द करने लगा। वह एक झटके के साथ उठा, कॉन्स्टेबल छिटककर नीचे जा गिरे। अरुण ने दरवाजे पर जोरदार लात मारा, उसके शक्तिशाली लरहर के सामने दरवाजे के लॉक नही ठहर सका, इससे आदित्य कुछ सोचता और गाड़ी रोकता, अरुण बिना कुछ सोंचे ही गाड़ी से छलाँग लगा चुका था, वह सड़कपर लोटता हुआ दूर तक चला गया। यह सब इतनी जल्दी हुआ था कि गिरे हुए कॉन्स्टेबल बस उठने ही वाले थे, अरुण को जानबूझकर मौत के मुंह में कूदते देख उन दोनों की आंखे फटी की फटी रह गयी। आदित्य ने पूरी ताकत से ब्रेक लगाया, गाड़ी का पहिया क्रिच्च.. के स्वर के साथ कुछ दूर तक फिसलता गया, दोनों कॉन्स्टेबल झटका खाकर फ्रंट सीट पर आ गिरे, ये तो उनकी खुशकिस्मती थी कि उनका मुँह सामने के काँच से टकराने से बच गया था।
"अजीब इंसान है ये, आत्महत्या ही करनी थी तो पुलिस फोर्स क्यों जॉइन किया?" एक कांस्टेबल ने हैरानी जताने के साथ गुस्सा दिखाते हुए कहा।
"वह आत्महत्या नही कर रहा मुरली! बस दिमाग हिला हुआ है उसका।" आदित्य ने कार से बाहर निकलते हुए कहा। "अब जल्दी निकलो और उसे लेकर हॉस्पिटल चलो, अब तक बस बेहोशी की हालत में था अब पता नही कौन सी हालत में होगा।" कहते हुवे आदित्य, अरुण जिधर कूदा था उस ओर दौड़ लगा दिया, दोनों कॉन्स्टेबल्स ने भी उसका अनुसरण किया।
"धत्त तेरी की! क्या इंसान है यार! अभी ये सब प्रॉब्लम कम है जो हाथ पैर तुड़वा रहा? पता नही आई.जी. सर को किधर से देशभक्त नजर आता है!" आदित्य खुद में ही बड़बड़ा रहा था। उसने चारों ओर गौर से देखा सड़क पर या उसके आसपास कोई भी नही था। हालांकि वहां खून के एक दो छींटे पड़े थे मगर वे निशान भी रोड के दूसरी तरफ जाते ही समाप्त हो गए।
"इतनी स्पीड चल रही गाड़ी का दरवाजा तोड़कर कूद गया, ऐसे हालात में तो उसे बहुत अधिक चोट आनी चाहिए, इतनी कि वह वहां से हिल भी न सके, पर वह तो यहां आसपास भी नजर नही आ रहा!" आदित्य अपना माथा पीट रहा था, वह अभी एक संकट से उबरा नही था कि अरुण ने उसके सिर दूसरा झंझट लाद दिया।
"सर! ये देखिये। ये तो इसी गाड़ी का वही गेट है जो अरुण सर ने तोड़ा था।" तभी मुरली की नजर वही रखे उस टूटे गेट पर पड़ी, जो बुरी तरह से घिसटा हुआ था।
"यह तो बहुत बुरी तरह घिसटा हुआ है सर!" दूसरे कॉन्स्टेबल ने कहा।
"अब समझ में आया! वह इतना भी बेवकूफ नही है, उसने इस गेट का उपयोग स्लाइडर की तरह किया है, क्योंकि अगर वह चाहता तो काँच तोड़कर आसानी से निकल सकता था पर उसने ऐसा नही किया।" आदित्य ने उस गेट को गौर से देखते हुए कहा।
"वो बोलकर आपको रुकवा भी तो सकते थे न सर?" दूसरे कॉन्स्टेबल ने फिर से सवाल किया।
"हाँ धरन! पर हो सकता है कि तुम दोनों को अपने पास इस तरह देखकर उसे कुछ आशंका हुई हो, इसलिए वो वहां से निकल गया। पर समझ नही आ रहा है कि उसने ऐसा क्यों किया?" आदित्य ने सिर खुजाते हुए कहा।
"अब हमें घटनास्थल पर भी जाना होगा सर, उन दोनों को भी बुलाना होगा, क्योंकि मीडिया तो किसी से सहानुभूति दिखाने से रही, सच्चाई उन्हें समझ नही आएगी। बात को बिना बढ़ाये चढ़ाए पेट नही भरेगा उनका।" धरन ने आवेश में भरकर कहा।
"बात तो सही है तुम्हारी धरन! पर हम सरकारी मुलाजिम हैं, कुछ नहीं कर सकते!" आदित्य ने शून्य में झाँकते हुए भावविहीन स्वर में कहा।
"उन बच्चों के माता पिता का क्या होगा सर? वे तो यही समझेंगे कि उन बच्चों का खून हमने किया है!" मुरली ने आशंका जताते हुए चिंतित स्वर में कहा।
"कुछ तो शुभ बोलो तुम दोनों, सुबह से दिमाग फ्रिज हो चुका है मेरा, सूख गया है एकदम! और वो अरुण हमें पुलिसगिरी सिखाने आया था खुद ही किसी चोर की तरह भाग निकला।" आदित्य आक्रोश से भर गया था।
"पर जवाब तो देना होगा न सर!" धरन ने अपनी चिंता व्यक्त की। इससे पहले आदित्य कोई जवाब देता उसका मोबइल घनघनाने लगा। उसने जल्दी से जेब से फोन निकाला और कान से लगा लिया।
"हेलो!" उधर से मेघना का स्वर उभरा।
"हा मैम! क्या हुआ?" आदित्य को जोरों से किसी अनिष्ट की आशंका हो रही थी।
"बहुत बुरा हो रहा है मिस्टर आदित्य! किसी तरह यह खबर फैल चुकी है, यहां लोगो की भीड़ उमड़ पड़ी है। मीडिया ने इसे पुलिस की बहुत बड़ी नाकामी करार दे दी है। हम इस उग्र भीड़ को न ही कंट्रोल कर सकते हैं न ही ये समझने की हालत में हैं। हर एक पल में हालत बद से बदतर होती जा रही है।" मेघना के स्वर में घोर चिंता थी, उसके आसपास की आवाजें भी आदित्य तक आ रहीं थी। वह समझ चुका था हालात अब हाथ से बाहर थे।
"वहां और फ़ोर्स बुलाइये मैम! किसी तरह भीड़ को शांत करना ही होगा।" आदित्य ने कहा।
"इससे कुछ नही होगा आदित्य! विपक्षी नेता इसे सत्तारूढ़ सरकार की बहुत बड़ी नाकामी बता रहें हैं। अगर पुलिस इसी तरह नाकाम होती रही तो जनता उग्र और अनियंत्रित हो जाएगी, फिर इसे काबू कर पाना असंभव होगा। यही नही.. "
"अब क्या बुरा होने को बचा है मेघ…!" आदित्य बिफर पड़ा।
"ऊपर से अरुण को सस्पेंड कर हिरासत में लेने के आदेश मिले हैं, तुम उसे जल्दी से लेकर यहां आओ!"
"यह नही हो सकता।"
"क्या? क्यों?"
"अरुण पहले ही चलती गाड़ी से कूदकर भाग चुका है।"
"मगर कैसे? वह तो बेहोश था। चलती गाड़ी से कूदकर क्यों मरना चाहेंगे भला वो?"
"यही तो समझ नही आ रहा कि कौन क्या चाहता है मेघ…! ये खिलाड़ी जो पर्दे के पीछे है वो क्या चाहता है? ये अरुण क्या चाहता है? मीडिया क्या चाहती है? लोग क्या चाहते हैं? नेता क्या चाहते हैं? किसी का कुछ पता नही कि कौन क्या चाह रहा है, मगर हमारे पास चाहने को कुछ भी नही है अब…!"
"भीड़ अनियंत्रित हो रही है आदि! तुम जल्दी से अपनी यूनिट के साथ यहां आओ।"
"ओके!" कहते हुए आदित्य ने कॉल कट कर दिया। "यूनिट हुंह…!" वह बड़बड़ाया।
"क्या हुआ सर!" मुरली ने आदित्य से पूछा।
"बहुत कुछ! बता नही सकते अभी, जल्दी चलों!" कहते हुए आदित्य अपनी गाड़ी की ओर भागा।
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पहाड़ी के पास सैकड़ो की भीड़ जुटी हुई थी, जिनके बच्चे मारे गए थे उनका रो रोकर बुरा हाल था। तभी वहां एक ब्लैक कलर की गाड़ी आकर रुकी। उसमें से एक श्वेत रंग के खादी कमीज को पहने हुए शख्स उतरा, कमीज के ऊपर काले रंग का कोट था, सिर पर सफेद रंग की टोपी। उसके मुख पर अजीब सा तेज था, उसके साथ काले कपडें पहने कुछ बॉडीगॉर्डस भी थे। जो उसकी गाड़ी के पीछे वाली गाड़ी में थे। जनता शोकाकुल थी, यह हृदयविदारक दृश्य देखकर सभी का दिल दहल चुका था। यह खबर इतना जल्दी फैल गयी थी कि पुलिस को वहां से निकलने का मौका तक नहीं मिला था।
वह व्यक्ति आते ही मेघना के सामने खड़ा हो गया, मेघना ने उसे अजीब नजरों से घूरा। यह विपक्षी पार्टी का क्षेत्रीय नेता 'नरेश रावत' था। उत्तराखंड में इसकी छवि काफी साफ सुथरी बनी हुई थी, अपने दल में शीर्ष पर होने के बाद भी इसने कभी कोई चुनाव नही लड़ा था। जनता इन्हें बहुत प्रेम और सम्मान देती है परन्तु पता नही कैसे इस बार उनकी पार्टी चुनाव हार गई।
अब तक माइकआदि की व्यवस्था हो चुकी थी, नरेश अपनी जनता को सांत्वना देते हुए आगे बढ़ा।
"यह हृदयविदारक घटना, यह सह पाना बहुत मुश्किल है! मुझे यकीन नही होता इस राज्य में बच्चे सुरक्षित नही हैं। बच्चे ही तो देश के भविष्य हैं, कोई है तो हमसे हमारा भविष्य छीनना चाहता है। मैं इससे इनकार नहीं करूंगा कि पुलिस ने अपनी कोशिश नही की होगी, मगर साफ जाहिर है कि पुलिस की कोशिश नाकाफी निकली। हमें आप सभी से सहानुभूति है, जिसने भी यह घृणित कार्य किया है हम उसकी कड़ी निंदा और भर्त्सना करते हैं। हम अनि पार्टी की ओर से ऐलान करते हैं कि परिवार को दो-दो लाख का मुवायजा दिया जाएगा। बाकी सरकार की यह जिम्मेदारी है कि वह पीड़ितों के दुख को समझे, अगर सरकार ही अपनी जनता की पीड़ा को नही समझेगी तो कौन समझेगा।" नरेश की आँखों में आँसू आ चुके थे, एक बॉडीगार्ड ने उन्हें रुमाल थमाया। "मैं आप सबसे यही विनती करता हूँ कि आप सब अपने अपने घर जाएं, जो हो गया वह बदला नही जा सकता, यह एक अपूरणीय क्षति है! और मैं पुलिस से उम्मीद करता हूँ कि वे इसे रोकने के लिए बेहतर कदम उठाए। आशा है वर्तमान सरकार में बैठे मंत्रियों के कान में इन मासूमों की चीख पहुँची हो ताकि वे अब जागे, उन्हें पता चले वे जिम्मेदारी लेकर जी रहे हैं उन्हें जिम्मेदारी उठानी होगी, सोने के लिए नही बिठाया गया है उन्हें वहां।" अब की बार नरेश के स्वर में सरकार के प्रति आक्रोश साफ साफ झलक रहा था। जनता पर नरेश की बात का जादुई प्रभाव पड़ा, धीरे धीरे भीड़ कम होने लगी। अब तक आदित्य भी वहां आ चुका था।
"मेरे एक ही बार बुलाने पर आपका आने के लिए धन्यवाद सर!" आदित्य ने सैल्यूट करते हुए कहा।
"यह तो हमारा फ़र्ज़ था आदित्य! अगर हमें पहले पता चला होता तो हम और जल्दी आ गए होते!" नरेश की आँखों अब भी डबडबाई हुई थी। "क्या तुम बता सकते हो क्या हुआ था?"
"कुछ भी क्लियर नही हुआ है नरेश जी! मुसीबतें अभी कम नहीं हुई हैं, अपने बहुत हेल्प की पर प्रॉब्लम अभी और बढ़ती जा रही है।" आदित्य ने कहा।
"ठीक है! जब भी कोई काम हो तो याद करना।" कहते हुए नरेश वहाँ से निकल गया।
"मुझे तो यकीन नही हो रहा कि अरुण को निकाल दिया गया, जबकि इसमे उसकी कोई गलती नही थी।" आदित्य मेघना के पास जाते हुए बोला।
"हम ऐसी ड्यूटी कर रहे हैं जिसमें हम अपने सही या गलत करने का चुनाव कर सकते हैं आदि, दुनिया उसे सही ठहराती है या गलत ये हम तय नही कर सकते।" मेघना ने परेशान स्वर में कहा।
"तो फिलहाल यह सब सम्भालने की जिम्मेदारी तुम्हारी है!" आदित्य ने धीमे से कहा।
"हूँ!" मेघना ने कहा, बाकी के कुछ पुलिसकर्मी, कुछ अन्य कर्मियों के साथ बच्चों के शव पर पुनः श्वेत चादर डालकर एक एम्बुलेंस में डलवाने लगे। कुछ ही देर में यह घटनास्थल बियाबान नजर आने लगा, पर वहां बच्चों का बिखरा हुआ खून अब भी इस बात का प्रमाण था कि यहाँ कुछ बहुत बुरा हुआ था।
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शाम हो चली थी, सूरज लाली लिए पश्चिम की दिशा में बढ़ता हुआ पहाड़ो के पीछे छुपने चला जा रहा था। वह पेड़ की जड़ को पकड़कर लहराते हुए नीचे उतरता जा रहा था, घाटी बहुत ही गहरी थी, उसका बायां हाथ खून से सन चुका था, मगर उसे इस जख्म की परवाह ही कहा थी, हालांकि उसने अपनी बाँह पर अपना शर्ट बांध रखा था, मगर अभी वह दिल में उठे उस टीस का इलाज ढूंढ रहा था।
"आखिर कौन है जो यह सब खेल, खेल रहा है? मुझे जल्दी पता लगाना होगा।" अरुण ने खुद से कहा और घाटी की अंधेरे में गुम हो गया।
क्रमशः....
Rohan Nanda
15-Dec-2021 09:23 PM
हे राम... आगे क्या होगा ये कल जान पाऊंगा... अब और भी काम करने को बाकी, इंट्रेस्टिंग कहानी।उससे भी लाजवाब आपकी लेखनी
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मनोज कुमार "MJ"
17-Dec-2021 11:43 AM
Bahut shukriya aapka ❤️🤗
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Sandhya Prakash
15-Dec-2021 07:08 PM
Bahut badhiya ja rahi kahani...
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मनोज कुमार "MJ"
17-Dec-2021 11:43 AM
Thank you so much ❤️
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Seema Priyadarshini sahay
11-Nov-2021 06:16 PM
बहुत खूबसूरत लिखते हैं सर आप
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मनोज कुमार "MJ"
17-Dec-2021 11:42 AM
Thank you so much ma'am 🥰
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